शहडोल : अब बोलूंगा तो बोलोगे की बोलता है लेकिन थोड़ा बोलने और पोल खोलने में हर्ज भी क्या है। गंदा है लेकिन अब यही धंधा है कहने को सब ईमानदार है लेकिन 1870 के ठेकेगाड़ी में सवार है... 16 नंबर वाला भैया आता है खुशियों का सन्देश लाता है,हर एक कुर्सी वाला मुस्कुराता है जब वो कुर्सी का मोल लगाता है.. !! कहत कवि गजेन्द्र...
सुन भई जुगाड़ू दलाल
तेरे चेलों को काहे का मलाल
न होगा सिस्टम पर सवाल
हर कोई जो होगा मालामाल
कुर्सी का दिखा के डर
तू अपनी तिजोरी भर
जिए कोई या जाए मर
करता रह तू जी सर, जी सर
तू बना मदारी, करे सिंडीकेट की सवारी, हां तू ने बाजी मारी,पर आनी तेरी भी बारी,कुख्यात का किया साथ, मिलाया सिस्टम से हाथ..
हा सिस्टम का लिहाज था
दफन सीने में राज था
कलम लिखने को मजबूर है
बताएंगे कौन मालिक कौन मजदूर है!!
खैर कहा सुनी माफी,अभी के लिए इतना काफी
हमे न तबादले का डर, न मुकदमे का है भय..
अब तक लिहाजा था अब लिखना पढ़ना तय...
कोबरा टेढ़ी बात...
कोबरा का काटा पानी नहीं मांगता
0 Comments